यदि होता सत्तासुर, तो मैं जनपथ में रहता,
खाकी वर्दी वाले होते, मन भी काला होता।
मीडियाजन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे,
चमचे तलवे चाटते रहते, संध्या और सवेरे।
आँख पे रखके काली ऐनक, कान में खूँट भरके,
चैन की बंसी बजा-बजा कर कान फोड़ता सबके।
यदाकदा आक्रोश जता कर, शर्मिंदा मैं होता,
यहाँ-वहाँ फिर घूम-घाम कर, करवट ले सो जाता।
बाँट-बाँट कर, लूट-लूट कर, भरता मैं भंडारे,
चापलूस और चरण चाट को रखकर सबके आगे।
खाकी वर्दी वाले होते, मन भी काला होता।
मीडियाजन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे,
चमचे तलवे चाटते रहते, संध्या और सवेरे।
आँख पे रखके काली ऐनक, कान में खूँट भरके,
चैन की बंसी बजा-बजा कर कान फोड़ता सबके।
यदाकदा आक्रोश जता कर, शर्मिंदा मैं होता,
यहाँ-वहाँ फिर घूम-घाम कर, करवट ले सो जाता।
बाँट-बाँट कर, लूट-लूट कर, भरता मैं भंडारे,
चापलूस और चरण चाट को रखकर सबके आगे।
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