पिता जी की पुस्तक 'मेघदूत-भावानुवाद' से....साधिकार...
तुम यश:पूत, तुम कवि-कुल-गुरु,
मैं तुच्छ अकिंचन दिशाहीन,
तुम वाणी के वर्चस्वि-पुत्र,
मैं अभिव्यक्ति-सामर्थ्यहीन
तुम काव्य कला के सागर हो,
मैं हूँ, तितीर्षु भयभीत-मीन,
तुम यक्षराज से स्वर-साधक,
मैं अविवेकी, स्वर-हीन, दीन,
अपनी अञ्जलि में लाया हूँ,
तव कुसुमों की माला- नवीन,
अवगुण-गणना-निरपेक्ष इसे
स्वीकार करो हे! कविप्रवीण।। डॉ.अभय मित्र
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