सोमवार, 21 जनवरी 2013

आओ मिल कर बेचे खायें......


तुम भी खाओ हम भी खायें, बन के पूरे पागल,
अभी तो सारा देश पड़ा है, बहुत बचे हैं जंगल।
जनता को रोटी के चक्कर में, कर डालो पागल,
रोते-रोते सो जायेगी सुसरी, नहीं करेगी दंगल।
हमने खाया, खूब पचाया, बैगन हो या बड़हल,
जनता मांगेगी तो दे देंगे, उसको बासी गुड़हल।
कपड़े सारे नोच लिये हैं, बचा ये हमरा आंचल,
इस पर आँख जमा रखी है, घूर रहे हो प्रतिपल।
पैरों में पड़ गयी बिवाई, दृष्य हो गया बोझिल,
वोट मांगने फिर से आ गये, लेकर पूरी बोतल।
मजा बड़ा अब आ रहा है, बजा रहे हो करतल,
थोड़ी सी तो कसर छोड़ दो, हो तुम कैसे अंकल।
आओ खेले करके फिक्सिंग, दिखे हो जैसे दंगल,
साथ-साथ रहेंगे हम सब, सोम हो या हो मंगल।
माल मजे का उड़ा के भइया, जनता को दो डंठल,
देखो फांका काट रहे हैं, हड़प के नोट के बंडल।
सड़क बनायी, बांध बनाया, सभी बनाया अव्वल,
हर ठेके में खूब कमाया, बरसे नोट के बंडल।।

बुधवार, 9 जनवरी 2013

मेघदूत...समर्पण

पिता जी की पुस्तक 'मेघदूत-भावानुवाद' से....साधिकार...

तुम यश:पूत, तुम कवि-कुल-गुरु,
मैं तुच्छ अकिंचन दिशाहीन,
तुम वाणी के वर्चस्वि-पुत्र,
मैं अभिव्यक्ति-सामर्थ्यहीन

तुम काव्य कला के सागर हो,
मैं हूँ, तितीर्षु भयभीत-मीन,
तुम यक्षराज से स्वर-साधक,
मैं अविवेकी, स्वर-हीन, दीन,

अपनी अञ्जलि में लाया हूँ,
तव कुसुमों की माला- नवीन,
अवगुण-गणना-निरपेक्ष इसे
स्वीकार करो हे! कविप्रवीण।।
      डॉ.अभय मित्र