शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

दुराग्रह



एक चश्मा है, टूटा-फूटा ही सही अपना है।
जिसे पहन मैं पुरजोर वक़ालत करता हूँ
लोग कुछ भी कहें मैं पानी को आग कहता हूँ
और इसे साबित करने को
एंजिल को खुदा कहता हूँ
कुंए में रहता हूँ, इसे ही मैं समुंदर कहता हूँ
यहीं से मैं आकाश देख लिया करता हूँ
तारे भी गिन लेता हूँ, आकाश माप लिया करता हूँ
मैं जो कहता हूँ वो जोर-जोर से कहता हूँ
काला है तो हुआ करे, उसको मैं लाल लाल करता हूँ,
मेरा जो फलसफा है उसको मैं आलातरीन कहता हूँ
तुम कुछ भी कहो उसे मैं बकवास ही कहता हूँ।
तुम मेरे साथ हो तो मैं तुमको प्यार भी करता हूँ
लगाया दिमाग तो दांत काट लेता हूँ
मरा नहीं हूँ, झुका भी नहीं करता हूँ।
क्या हुआ जो उकड़ूँ बना बैठा हूँ।
सावन का अंधा हूँ पर लाल-लाल लखता हूँ।
खुलेपन से नफरत है, सो दीवारें खड़ा करता हूँ।
न मानो तुम, नफरत करो,
मैं तो मनवाने को विचार आयात किया करता हूँ।
भूख का दिखा कर डर, उन्हें फुसलाकर,
रक्तबीजों को भी अधिकार (?) दिला देता हूँ।
खून के रंग से है प्यार मुझे,
इसलिये समझ लो मैं क्या-क्या नहीं किया करता हूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें